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यह निर्मम संसार नहीं है हमको भाता / रंजना वर्मा

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यह निर्मम संसार नहीं है हम को भाता
उघ सूरज के साथ साँझ को है ढल जाता

सोती सारी रात कमल को ले गोदी में
खिले भोर के साथ शाम को मुरझा जाता

जो मनचीता स्वप्न नयन को लगता प्यारा
अकथनीय हो यत्न तभी सच्चा हो पाता

चटक चाँदनी रात मोह लेती है मन को
तारों की बारात चमकना बहुत सुहाता

धरती पर जब उतर डोलते हैं सब तारे
धर जुगनू का रूप रहे मन नयन लुभाता

बहता सुखद समीर गन्धवह खुशबू ओढ़े
छू लेता मन सुमन स्वयं फिर रहे लजाता

मन से जातीं लिपट न जाने कितनी यादेँ
जब अतीत का पृष्ठ कभी यों ही खुल जाता