भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई बात बने / साहिल परमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:28, 21 मई 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी दीवानगी की चर्चा है ठीक मगर
थोड़े मदहोश तो हो जाओ, कोई बात बने

सहमते और ठिठुरते गुज़र गईं पीढ़ियाँ
ख़ुद बादल हो फैल जाओ, कोई बात बने

तुम्हारे साथ ही जुड़ी है ज़मीं की ख़ुशबू
फूल की भाँति बिखर जाओ, कोई बात बने

छूना तो ठीक है, सीने से लगा लेंगे वे
नगमा बनके भीतर जाओ, कोई बात बने

ढेर-सा डर है, झिझक भी है झुँझलाहट पर
सितम के सामने हो जाओ, कोई बात बने

मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार