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लोहार के बारे में / राकेश रंजन
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तुम लोहार को जानते हो न, कवि?
जानते हो न
कि जीवन के औजार
उसकी भट्ठी में लेते हैं कैसे आकार?
जानते हो न
किस आँच के साँचे में ढलती है लोहार की छवि?
तुम्हारी छवि
किस साँचे में ढलती है, कवि?
तुमने सुनी है न
सन्नाटे को चीरती, दिशाओं को धड़काती
दूर तक जाती
उसके घन की ठनकती आवाज?
कहाँ तक सुनाई देता है
तुम्हारे शब्दों का साज?
तुमने सुनी है न वह कहावत
कि तभी तक चलेगी लोहार की साँस
जब तक चलेगी उसकी भाँथी?
मेरे साथी!
क्या तुम अपनी बाबत
कह सकते हो
ऐसी ही एक कहावत?
बता सकते हो
कि लोहार के सपने किस आग में जलते हैं
जिसके बाद उसकी भट्ठी में
कुदाल के बदले
कट्टे ढलते हैं?
एक लोहार की भविता को
तुम जानते हो न, कवि?
सच कहना, अपनी कविता को
तुम जानते हो न, कवि?