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ब्रहमा बैठे फूल कमल पै, सोचण लागे मन के म्हां / राजेराम भारद्वाज

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                         (13)

सांग:– चमन ऋषि – सुकन्या (अनुक्रमांक – 1)

"'ब्रहमा बैठे फूल कमल पै, सोचण लागे मन के म्हां,
आई आवाज समुन्द्र मै तै, करो तपस्या बण के म्हा ॥टेक॥

तप मेरा शरीर तप मेरी बुद्धि, तप से अन्न भोग किया करूं,
तप से सोऊं तप से जागू, तप से खाया पिया करूं,
तप से प्रसन्न होके दर्शन, भगतजनों नै दिया करूं,
मै अलख निरंजन अंतरयामी, तप कै सहारै जिया करूं,
तप से परमजोत अराधना, तप से बंधू वचन के म्हां॥

तप मेरा रूप तप मेरी भगती, तप तै सत अजमाया करूं,
तप मेरा योग तप मेरी माया, तप तै खेल खिलाया करूं,
कोए तपै मार मन इन्द्री जीतै, जिब टोहे तै पाया करूं,
मै ब्रहमा मै विष्णु तप से, मै शिवजी कहलाया करूं,
निराकार साकार तप तै, व्यापक जड़-चेतन के म्हा॥

शिश तै स्वर्ग चरण से धरती, नाभी से असमान रचूं,
पलक झिमै जिब दिन रात हो, आख्यां तै शशि भान रचूं,
तप से क्रोध क्रोध से प्रलय, तप तै तीन जिहान रचूं,
तप से मनु देवता निश्चर, साधू संत सुजान रचूं,
पीठ से पाप गुदा से मृत्यु, जाम्या सोए मरण के म्हां॥

मै नहीं किसे कै धोरै रहता, नहीं किसे तै न्यारा सूं,
नहीं किसे तै मेरी ईष्या, नहीं किसे का प्यारा सूं,
नहीं किसे नै दुःख सुख देता, नहीं किसे का सहारा सूं,
राजेराम कर्म करता, फल वैसा देणेहारा सूं,
तप से राज धर्म से लक्ष्मी, मुक्ति हरि भजन के म्हां॥