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धरती धकेल / मोहम्मद सद्दीक

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मैं
डूंगर स्यूं डीगो
भोत बडो
आदमी बाजूं
म्हारै स्यूं मिलण री तरकीब
म्हारै तांई पूगणै रो तरीको
सीधो सो है।
खाती थां वासतै
पेड़ी बणांवै
वैज्ञानिक बणावै
थां वासतै भोपूं
भाषण रा पारखी
बणै थारा दुभासिया
पेडयां चढ़तां थकां
थारी पागड़ी नै
थामणिया लोग
थारै सागै होवै
थानै नीचो देख‘र
ऊपर चढ़णो है
मैं
बडो आदमी
मन्नै ऊंचो सुणै
मोटो दीसै
चश्मो इस्यो जिकै में
थे दीख सको
बो थानै थारै
हाथां में राखणो है
च्यारूंमेर पेड़यां लगा‘र
छाती ताईं पूगणो है
कान रै सरोदे ताईं
ऊंचो आवणो है
पण - थे
कीड़ी सा सुरळाता
चीड़ी ज्यूं चूंचाता
भेड़ बकरियां ज्यूं
मिमियाता
कोंमल बाणी में/कंवळै शब्दां स्यूं
बात करण री भूल मत करज्यो
घणासारा मिल
मोकळा रोळा मचावो
घणामिल‘र मोटी
देह धारण करो
घणी सारी आवाजां नै मिला‘र
मोटी आवाज करो
पेड़यां लगा‘र
आपरो कद बढ़ाओ
भोंपू लगा‘र आपरी
आवाज नै सो गुणी करो
दुभासिया सागै राखो
फेरूं भी
मन्नै ईयां लागै-जाणै
मिलणों सोरो कठै
बड्डे री बड्डी चोपाळ पर
पाळतुवां रीं कतार
थारी बोलीरी
आपरी या ओपरी
भासा री
थारै कद री थारै काम री
थानै मानखै री
परख तो कर ही लेसी
अर कीं जोगा हो तो भी
थारी सुण अणसुणी
करण रो
देवी अधिकार तो
जनम-जनम स्यूं
म्हारै कन्नै ठावो है
बिंयां,
मैं थारो हूं
थे म्हारा हो
मैं थांनै थे मन्नै जाणो
थे ही स्याणा अर मैं ही स्याणो
होवै कीं काण कसर तो
खोलो बाकी अर बखाणो