भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हूक री कूक / मोहम्मद सद्दीक

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:03, 30 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहम्मद सद्दीक |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नैण रो नीर ढळयो ढळती में
पसरग्यो पलकां पासै
कुणी बींनै बूझै मनड़ै माली
नैण रूठियां जग हांसै।।
झिलमिल-झिलमिल पळकै पलकां
ढुळकै मोती रो सिणगार
आस पड़ौसी भीजण लाग्या
हूक री कूक चढ़ी गिगनार
कुण थारी गागर ठेस लगाई
कुण थानै पूछैलो पुचकार
किण बिद नीर ढळयो ढळती में
बिखरग्यो पलकां पासै...

प्रीत पावणी हियै हिलोरां
पींगां भर-भर हेता रचै
मेंदी सिरसा लाल मान्डणा
कोरै मन में रचै बसै
जद-कद पिघळै मन रो मोती
नैणा नीर बणै बिखरै
इणबिद नीर ढळयो ढळती में
बिखरग्यो पलकां पासै ....
रूड़ो रूप उतर नैणा में
नेह-री नींव लगा लीनी
मीठी सांस सुबास बसी बीं
हिवड़ै हाट सजा लीनी
कुण म्हारै हिवड़ै री हाट उजाड़ी
कुण बीं में लाय लगा दीनी
इण बिद नीर ढळयो ढळती में
पसरग्यो पलकां पासै
कुण बीं नै बूझै मनड़ै मांली
नैण रूठियां जग हांसै।।