भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादलों ने आसमां में मंत्र फूंका / राम लखारा ‘विपुल‘
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:18, 1 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम लखारा ‘विपुल‘ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बादलों ने आसमां में मंत्र फूंका
बूंद अमृत की बरसती जा रही है।
तप रही है यह धरा भी साधना में
दुख निवारण श्लोक जपती है निरंतर।
प्यास वृक्षों की नया विस्तार पाकर
नील नभ की ओर तकती है निरंतर।
आगमन का पत्र शायद मिल गया है
मन मयूरी नृत्य करती जा रही है।
खत्म होता जा रहा वनवास अपना
कोंपलों का भाग्य फिर से लौटता है।
ज्यों कि हर अभिशप्त मन जीवन सफर में
हर घड़ी पूजित चरण को खोजता है।
बढ रही है आस इक नूतन जनम की
दूरियां ज्यों ही सिमटती जा रही है।
बादलों ने आसमां में मंत्र फूंका
बूंद अमृत की बरसती जा रही है।