भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहते हैं, तारे गाते हैं / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:48, 16 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह= निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय ब...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कहते हैं, तारें गाते हैं!


सन्‍नाटा वसुधा पर छाया,

नभ में हमने कान लगाया,

फिर भी अगणित कंठों का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं!

कहते हैं, तारें गाते हैं!


स्‍वर्ग सुनाओ करता यह गाना,

पृथ्‍वी ने तो बस यह जाना,

अगणित ओस-कणों में तारों के नीरव आँसू आते हैं!

कहते हैं, तारें गाते हैं!


ऊपर देव, तले मानवगण,

नभ में दोनों गायन-रोदन,

राग सदा ऊपर को उठता, आँसू सदा नीचे झर जाते हैं!

कहते हैं, तारें गाते हैं!