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दोहा सप्तक-01 / रंजना वर्मा

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मन की आँखों देखिये, मिल जाये करतार।
नयन न देखें देखता, सब को पालनहार।।

सबकी नजर बचा सखी, आ बैठी इस ओर।
पिय की पाती हाथ में, जैसे छिपता चोर।।

लिखती फूलों से पता, पंखुरियों से नाम।
जा तू अपने घर सखी, अब तेरा क्या काम।।

रोम रोम करने लगा , भीषण हाहाकार।
अब तो आ जा साँवरे, बरसा दे रसधार।।

गीत बनी रोमावली, श्वांसों के उच्छ्वास
निःश्वासों में बाँध कर, लायी तेरे पास।।

विशद ज्ञान भण्डार में, जैसे नन्हा दीप
महिमा अद्भुत ज्ञान की, मैं मोती वो सीप।।

लिखे विधाता अहर्निश, हर प्राणी का भाग
लिखती पढ़ती मैं रहूँ, रात रात भर जाग।।