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यह पपीहे की रटन है / हरिवंशराय बच्चन

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यह पपीहे की रटन है!


बादलों की घिर घटाएँ,

भूम‍ि की लेतीं बलाएँ,

खोल दिल देतीं दुआएँ- देख किस उर में जलन है!

यह पपीहे की रटन है!


जो बहा दे, नीर आया,

आग का फिर तीर आया,

वज्र भी बेपीर आया- कब रुका इसके वचन है!

यह पपीहे की रटन है!


यह न पानी से बुझेगी,

यह न पत्‍थर से दबेगी,

यह न शोलों से डरेगी, यह वियोगी की लगन है!

यह पपीहे की रटन है!