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दोहा सप्तक-52 / रंजना वर्मा
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तब न सुरक्षा दे सकी, अब करती उपकार।
मृतकों की कीमत लगी, है देने सरकार।।
पेट पकड़ माँ रो रही, पत्नी छाती कूट।
पाने हेतु मुआवजा, स्वजन मचाते लूट।।
योग सदा से ही करे, जीवन का उत्थान।
सतत दिलाये जगत में, मां और सम्मान।।
तन मन का मस्तिष्क से, जब होता है योग।
आत्म तत्व से जीव का, तब होता संयोग।।
बेटी ही जगतारिणी, बेटी जग आधार।
पत्थर होगा वो हृदय, जो न लुटाये प्यार।।
झाँसी की रानी बनी, रिपुदल का आतंक।
चली मिटाने जो लगा, परतन्त्रता कलंक।।
रण में बढ़ हुंकारती, फूँक रही थी शंख।
सुना फिरंगी सैन्य ने, टूटे आशा - पंख।।