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दोहा सप्तक-62 / रंजना वर्मा
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बरगद की छाया गयी, पीपल हुआ उदास।
फुर्सत है किसको कि जो, आकर बैठे पास।।
फूलों पर पहरे लगे, सब पंखिरियाँ बन्द।
आओ अब तो बाँट लें, थोड़ी थोड़ी गन्ध।।
नागफ़नी रोपी नहीं, बोया नहीं बबूल।
फिर क्यों बैरी बन गये, सब पलाश के फूल।।
दूर दूर तक रेत है, बड़ी तेज है धूप।
काँटे चुभते कण्ठ में, कौन सँभाले रूप।।
पहरे बोलों पर लगे, सपनों पर प्रतिबंध।
तड़प रही गीतांजली, कैसे उड़े सुगन्ध।।
सुख के सपने हाट में, होते हैं नीलाम।
चिंता की चिंगारियाँ, सुलगे आठो याम।।
मन का सुख तो ले गया, वो मेरा चितचोर।
अब तो रात घनी हुई, जाने कब हो भोर।।