भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहा सप्तक-69 / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:07, 14 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=दोह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पवन दिलासा दे रही, अब जा सब दुख भूल।
डाली डाली खिल गये, अमलतास के फूल।।

फूलों की खुशबू लिये, डोली मस्त बयार।
धूप गुलमोहर हाथ ले, लगी जताने प्यार।।

चाँद गया परदेश सब, तारे हुए अनाथ।
यादों की गंगाजली मन विरहन के हाथ।।

निशिपति परदेसी हुआ, रजनी हुई उदास।
तारों सी टिमटिम करे, मधुर - मिलन की आस।।

टप टप टपके नयन जल, ज्यों महुए के फूल।
बैरी साजन कह गया, मुझ को जाना भूल।।

कृष्ण मुरारी का भजन, कालिंदी का नीर।
तुलसी बिरवा को नमन, तब है शुभ तकदीर।।

कालिंदी के नीर से, हो ऐसा अनुबन्ध।
श्याम साँवरे से जुड़े, मनचाहा सम्बन्ध।।