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दोहा सप्तक-69 / रंजना वर्मा
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पवन दिलासा दे रही, अब जा सब दुख भूल।
डाली डाली खिल गये, अमलतास के फूल।।
फूलों की खुशबू लिये, डोली मस्त बयार।
धूप गुलमोहर हाथ ले, लगी जताने प्यार।।
चाँद गया परदेश सब, तारे हुए अनाथ।
यादों की गंगाजली मन विरहन के हाथ।।
निशिपति परदेसी हुआ, रजनी हुई उदास।
तारों सी टिमटिम करे, मधुर - मिलन की आस।।
टप टप टपके नयन जल, ज्यों महुए के फूल।
बैरी साजन कह गया, मुझ को जाना भूल।।
कृष्ण मुरारी का भजन, कालिंदी का नीर।
तुलसी बिरवा को नमन, तब है शुभ तकदीर।।
कालिंदी के नीर से, हो ऐसा अनुबन्ध।
श्याम साँवरे से जुड़े, मनचाहा सम्बन्ध।।