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दोहा सप्तक-70 / रंजना वर्मा
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पड़ीं दरारें देह में, गयी धरा सब सूख।
सिर बांधे बैठा कृषक, मरी पेट की भूख।।
नयनों की गंगाजली, आँसू का जल डाल।
बूँद बूँद हर याद की, हमने रखी सँभाल।।
प्रहरी बन कर देश के, दे देते हैं जान।
किन्तु कहाँ मिलती उन्हें, है सच्ची पहचान।।
आग सुलगती हर तरफ, देश न पाये चैन।
व्यर्थ लगे बलिदान तब, जब दुखमय दिन रैन।।
मन की आँखों देखिये, मिल जाये करतार।
नयन न देखे देखता, सब को पालनहार।।
सब की नजर बचा सखी, आ बैठी इस ओर।
पिय की पाती हाथ में, छिपता जैसे चोर।।
लिखती फूलों से पता, पंखुरियों से नाम।
जा तू अपने घर सखी, अब तेरा क्या काम।।