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दोहा सप्तक-78 / रंजना वर्मा
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राधा के कोमल चरण, गिरिधर रहे दबाय।
अधर दबा के राधिका, मन्द मन्द मुसकाय।।
निः शक्तों को जगत में, सता रहे जो लोग।
क्षमा उन्हें मत कीजिये, सदा दण्ड के जोग।।
फूल वहाँ खिलते नहीं, जहाँ नहीं हो नीर।
बिना नीर जीवन नहीं, ऊसर सी तस्वीर।।
द्वार आपके आ गये, सुनिये दुर्गा मात।
शरण पड़े हैं आपकी, ले दुर्बल मन गात।।
बिना नीर की बूँद के, वसुधा होती बाँझ।
सागर जल पाये बिना, कब सतरंगी साँझ।।
लाली छायी गगन में, आँगन उतरी शाम।
चल चल कर दिनकर थका, चाह रहा आराम।।
भाती है मन को नहीं, ऊसर की तस्बीर।
जीवन का श्रृंगार नित, करते नीर समीर।।