भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहा सप्तक-90 / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:23, 14 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=दोह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सभी घोटाले दब गये, शेयर या बोफ़ोर्स।
सी बी आई तक लगा, है अब इनका सोर्स।।

इतना सब को दे दिया, भरा सभी का पेट।
फ़िक्स कर दिया आज है, हमने सबका रेट।।

अम्बर बरसाने लगा, जब भीषण हथियार।
धरती किसको बाँट दे, स्नेह शांति अरु प्यार।।

मन में मीठी कल्पना, आगत का विश्वास।
ले बहुएँ जलती रहें, जले ननद ना सास।।

जन्माती जो जगत को, उसका क्या सम्मान।
पग पग रहे तिरस्कृता, पुरुष करे अभिमान।।

पोस्टरों पर नाचती, नित्य नयी तस्वीर।
सुत निर्वसना देखता, ये कैसी तकदीर।।

दादा 'पोता' चाहते, 'पुत्र' पिता की चाह।
माँ की ममता रो रही, कहीं न दीखे राह।।