भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोहा सप्तक-100 / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:46, 14 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=दोह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्रीत कृष्ण सम कीजिये, दिया हृदय में वास।
कभी न टूटे प्रीत नित, बना रहे विश्वास।।
नारी होती है सदा, मातृ तत्व का रूप।
सुत का हित ही देखती, छाया हो या धूप।।
जिसने त्यागी कामना, वह ही सरल सुजान।
यतन करे तो एक दिन, मिल जायें भगवान।।
जाति धर्म भूली सभी, बना कृष्ण को यार।
सहज कहीं मिलता नहीं, सहजो जैसा प्यार।।
धुन मृदंग मीठी बड़ी, जब जब पड़ती थाप।
तन मन रँगता प्रीति रँग, मिटे सकल सन्ताप।।
धुन मृदंग मीठी बड़ी, जब जब पड़ती थाप।
तन मन रँगता प्रीति रँग, मिट जाता सन्ताप।।
मीरा बनी समर्पिता, राधा- प्रिय अनमोल।
कृष्ण नाम ले पी गयी, प्याले में विष घोल।।