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दोहा सप्तक-92 / रंजना वर्मा
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चन्दन सा तन गन्धमय, आँचल बसी सुवास।
रंगमहल सी देह में, नैना करें प्रकाश।।
फूली सरसों देह पर, पाटल अवनत गाल।
चुटकी मादक प्यार की, हुई लाज से लाल।।
नयन नीर नीरज खिले, अधर खिले कचनार।
छुई मुई गोरी हुई, छेड़ गया फिर प्यार।।
प्रिय अपने सँग ले गये, मौसम के सब रंग।
अब प्रतिपल लड़नी हमें, है जीवन की जंग।।
मधु बसन्त पतझर हुआ, तुम बिन तन निष्प्रान।
त्रिविध समीरन लू बना, जीवन हुआ मसान।।
ये दो नैना जल भरे, टप टप टपके नीर।
सावन भादो आ बसे, इन आँखों के तीर।।
माँग काढ़ि सेंधुर भरे, नैननि कज्जल डार।
साजन सोन गयी मिलन को, झूमति झमकति नार।।