मुक्तक-07 / रंजना वर्मा
अगर इंसानियत इंसान को पहचान हो जाये
करे निज धर्म पालन कर्म में ईमान हो जाये।
हृदय में दूसरों के कष्ट का अनुभव अगर कर ले
रहे वह आदमी पर भूमि का भगवान हो जाये।।
जिस से तू ने हमे नवाज़ा है
जख़्म वो आज तक भी ताजा है।
भोगना है जिसे ता उम्र हमे
जुल्म का तेरे खामियाजा है।।
अब हमें भी खिलखिलाना आ गया
चोट खा कर मुस्कुराना आ गया।
सामना हर इक मुसीबत का करें
मौत से आँखे मिलाना आ गया।।
द्वार पर अब न आता कभी डाकिया
पट नहीं खटखटाता कभी डाकिया।
पथ निहारे न विरहिन किसी मोड़ पर
अब न सन्देश लाता कभी डाकिया।।
सांवरा श्याम वृन्दा विपिन में मिला
भोर में, प्रात में और दिन में मिला।
थे युगों से अधर पर प्यास के ढूँढते
तृप्ति जल बिंदु तो वो तुहिन में मिला।।