भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या कंकड़-पत्थर चुन लाऊँ? / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:56, 16 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ? यौवन ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ?


यौवन के उजड़े प्रदेश के,

इस उर के ध्‍वंसावशेष के,

भग्‍न शिला-खंडों से क्‍या मैं फिर आशा की भीत उठाऊँ?

क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ?


स्‍वप्‍नों के इस रंगमहल में,

हँसूँ निशा की चहल पहल में?

या खंडहर की समाधि‍ पर बैठ रुदन को गीत बनाऊँ?

क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ?


इसमें करुण स्‍मृतियाँ सोईं,

इसमें मेरी निधियाँ सोईं,

इसका नाम-निशान मिटाऊँ या मैं इस पर दीप जलाऊँ?

क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ?