भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थारै सिर पर पैणा नाग / मोहम्मद सद्दीक

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:10, 14 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहम्मद सद्दीक |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थारै सिर पर पैणा नाग
मिनख रै मूूंडै आया झाग
पळकते माथै पर क्यूं दांग
लाडला जाग सकै तो जाग
मूरख्या जाग सकै तो जाग

कुणसै मिनख थारी जीभ डाम दी
कुणसै मिनख थारा कुतरया कान
कुणसै मिनख थारै पचियां नै पींच्या
कुणसै मिनख थारो मार्यो मान

कुणसै मिनख थारी लाज लूटली
कुणसै मिनख थारी राखी काण
कुणसै मिनख थारै बचियां नै बैच्या
कुणसै मिनख थारी खायो धान।

अब, सोच समझ कर चाल
बंद कर रोज बजाणा गाल
चटोरा चाट रया है माल
लाडला पाल सकै तो पाल।

थारै सिर पर बैठ्यो काग
हंसला गावै रोणी राग
जलम सूं थारै लागी लाग
दरद री लेणी पड़सी थाग
चमकतै चैरां पर क्यूं दाग
लाडला जाग सकै तो जाग।
मूरख्या जाग सकै तो जाग।।

कुणसो लगावै थारै घर में चूंचकी
कुणसो उजाड़ै थारा हाट बजार
कुणसो उछाळै थारै सिर को सेवरो
कुणसो उगावै थारै पीड़ हजार

कुणसो लगावै थारै लार कूकरा
कुणसो भगावै थानै बीच बजार
कुणसो नचावै थारै मर रा मोरिया
कुणसो बणावै थारी बात हजार

आ बैठ बता कर बात
अणूती लोगां कर ली घात
खेलणो है अब देणी मात
ऊगसी सोनलियो परभात।

थारै घर में लागी आग
बुझाणी है - तो बेगो भाग
लोग तो खेलरया है फाग
पटकसी थारै सिर की पाग
लगा दी घर-घर में कुण आग
मुळकतै मूंडै पर क्यूं दाग
लाडला जाग सकै तो जाग।
मूरख्या जाग सकै तो जाग।।