भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पगडांडी रा मोड़ मिनख रै / मोहम्मद सद्दीक

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:26, 14 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहम्मद सद्दीक |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पगडांडी रा मोड़ मिनख रै
उणियारै री आरसी।
चेते रा चितराम जगत री
तपती काया ठारसी।।

आभो है अणजाण धरा पर
आखर कंवळा है-
चूले अणबूझ आंच
चेतरा मारग अंवळा है
भभक उठैली हाय-लाय
जद कण-कण मन रो धारसी।

बळसी चाली पवन बिरछ रा
पीळा पड़िया पात
फळ मांदा कद बीज बणैला
माळी करियां घात
चेत मानखा राख रूखाळी
लोग मिनख नै मारसी।

बाळू-भींत अकर री ओछी
पल भर री है पावणी
मान करै आ‘ - मै’ आंधी रा
लागै है अणखावणी
काठ री हांडी चूले चढियां
बळ-जळ आपो हारसी।
जगत तारणी मिनख मारणी
सगती दावेदार है
माथै ऊपर बूक मांडणी
दुनियां सा‘ बीमार है
धन रा लोभी लाभ देखसी
बिना मिनख रै सारसी।।
अणहोणी नै नमस्कार है
होणी नै कुण टाळसी
बीज में रूंख रो रूप पळै
पण-कुणसै संचै ढाळसी
चेते रा चितराम मिनख री
काया नै अब ठारसी
पगडांडी रा मोड़ मिनख रै
उणियारै नै आरसी।।