मुक्तक-26 / रंजना वर्मा
साथी  ऐसे  चमन  में, आती  नहीं  बहार 
कागज़ के हैं फूल सब, नहीं भ्रमर  गुंजार।
बार बार खिलते नहीं, हर गुलशन में फूल
इंतज़ार तितली करे, अब  है  यह  बेकार।।
भक्त जनों  हिलमिल  चलो, माँ दुर्गा के द्वार
बाँह  पसारे   माँ  खड़ी, मिलने  को  तैयार।
चरणों में वन्दन  करें, अभिनन्दन  की  धूम
कब झोली खाली रही, पाकर माँ का प्यार।।
बड़ी बेचैनियाँ हैं  चैन की  महफ़िल कोई दे दे
भटकते राह  में हैं  राह की  मंजिल कोई दे दे।
नहीं  है  साथ  मेरे  नाखुदा  गहरा समंदर  है
भँवर में है फँसी कश्ती मुझे साहिल कोई दे दे।।
हुई  आप  से  जो  मुलाकात  है
बिना घन गगन से ये बरसात है।
बरसने  लगी  प्रेम  की  धार  ये
मिले आप ये भी तो  सौगात  है।।
जिधर से अम्बिका माँ  जा रही होगी
दिशा वो हर किसी को भा रही होगी।
चढ़ी है सिंह पर जो  शक्ति  की धारा
सभी  आपत्तियों  को  ढा  रही होगी।।
	
	