मुक्तक-34 / रंजना वर्मा
कहे शुक शुकी से कि आया है फागुन
भरा है गुणों से नहीं कोई अवगुन।
निकट आ मैं पाँखों में तुझको छिपा लूँ
जरा पास आ मेरी बातें तो लें सुन।।
आ गये हम तोड़ कर नाते सभी संसार से
तुम हमारी जिंदगी में हो किसी त्यौहार से।
तुम कभी भी अब हमें दिल से बुला कर देखना
हर सुबह पाओगे हम को द्वार पर अख़बार से।।
लोग कितने सवाल करते हैं
कुछ कहो तो बवाल करते हैं।
कब समझते हैं बात ये दिल की
बेवजह ही धमाल करते हैं।।
मिला आदेश तो संसार में आना जरूरी था
सलोने प्यार में तेरे तुझे पाना जरूरी था।
तेरी उल्फ़त में मनमोहन निछावर जिंदगी अपनी
मगर इक बार गिरधर दर पे भी आना जरूरी था।।
जनतंत्र है इस पर जरा अभिमान कीजिये
इस देश के कानून का सम्मान कीजिये।
अधिकार हैं क्या आप के यह जान लीजिये
आलस्य त्याग जागिये मतदान कीजिये।।