मुक्तक-63 / रंजना वर्मा
पुण्य से जब मिली जिंदगी
फूल बन कर खिली जिंदगी।
जुगनुओं सी चमकती दिखे
नभ बनी झिलमिली जिंदगी।।
अगर स्वार्थअंकुर उदय हो गया
हृदय कामना का निलय हो गया।
रही तब कहाँ धर्मअवधारणा
सभी सदविचारों का लय हो गया।।
उगा जो उसे अस्त होना पड़ेगा
कुटिल वायु से त्रस्त होना पड़ेगा।
सुगम राह कब है हुई जिंदगी की
विषमता का अभ्यस्त होना पड़ेगा।।
इस धरती पर तो सब का आना जाना है
देना है ज्यादा और बहुत कम पाना है।
जो आज दिया कल वही लौट कर आयेगा
लेनादेना जग का दस्तूर पुराना है।।
अब तक जो पढ़ते आये वो तहरीर बदल ही जायेगी
अब तक देखा जिस को सब ने तस्बीर बदल ही जायेगी।
भारत में रहने वालों की सोयी किस्मत भी जाग उठे
शमशीर कलम यदि तुम कर लो तकदीर बदल ही जायेगी।