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मुक्तक-87 / रंजना वर्मा

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था अनाचार कुछ पहले से कुछ कृष्ण जन्म के बाद हुआ।
बन बैठे परदेशी शासक भारत पूरा बर्बाद हुआ
विनती सुन ली जगदीश्वर ने हर पीड़ित मन की हर घर की
आजाद हुए वसुदेव देवकी भारत भी आजाद हुआ।

विविध रंगों भरे सुन्दर चमन के फूल हैं हम तुम
बहुत गहरा समन्दर है नदी के कूल हैं हम तुम।
हमारे बीच बहती है लहरती प्यार की गंगा
अजानों की सदा हरि का भजन अनुकूल हैं हम।।

वही करते दिखावा जिन में कोई बल नहीं होता
फ़क़त आवाज होती आत्म का सम्बल नही होता।
रहे सम्पन्न तन बल से भरा हो आत्म का बल भी
सदा वह शुद्ध मन वाला हृदय में छल नहीं होता।।

अगर थोथा चना हो तो बहुत ही शोर करता है
मिली हो हार फिर भी वह बहस मुँह जोर करता है।
नहीं है मानता कोई कभी भी गलतियाँ अपनी
यही जज़्बा भरी ताक़त को भी कमजोर करता है।।

सुबह गूँजे जो गुरुबानी वही प्यारा सबद हैं हम
उठे जो हाथ करने को दुआ उसका वो रब हैं हम।
हमी तो हैं जो गिरजाघर में जा कर कर रहे प्रेयर
करें जो सरहदों पर हिन्द की रक्षा वो सब हैं हम।।