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मुक्तक-93 / रंजना वर्मा
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किसने किसको मूर्ख बनाया
किसने किससे धोखा खाया।
अंधी श्रद्धा की आँखों ने
सज्जन जनता को भरमाया।।
भूख पेट की तृप्ति हेतु ही ढाबा बनते
श्रद्धा का परिणाम हैं काशी काबा बनते।
धूल आँख में झोंका करते नित जनता की
कर्म ज्ञान से हीन व्यक्ति ही बाबा बनते।।
बूँद सागर बना लिया हमने
दिल में ही घर बना लिया हमने।
थक गये हम थे यूँ तन्हाई से
तुझको रहबर बना लिया हमने।।
बहुत रह लिये जिंदगी में अकेले
तड़प दर्दो ग़म भी बहुत हम ने झेले
हैं घबरा गये अब तो तनहाइयों से
हमें साँवरे अपनी बाहों में ले ले।।
राह लम्बी किन्तु चलना है अगर
मोड़ पर हर नित्य अनजानी डगर।
थाम कर यह हाथ यदि हम चल पड़ें
पूर्ण होगा जिन्दगानी का सफ़र।।