मुक्तक-103 / रंजना वर्मा

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:58, 15 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=मुक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आ जा श्याम रचायें रास आज मन मेरा हरषाये
जब जब देखूँ तेरी ओर हृदय, यह मेरा मुसकाये।
लो आया त्यौहार खुशी का रुत मिलने की आयी
मिल गये जब नैनों से नैन धड़क दिल मेरा रह जाये।।

नशा उल्फ़त का है ऐसा नहीं उतरे उतारे से।
चला आ साँवरे विनती मेरी सुन ले पुकारे से।
पड़ी मझधार में नैया भँवर भी उठ रहे भीषण
नहीं पतवार हाथों में लगा दे अब किनारे से।।

कन्हैया भक्ति तेरी कष्ट सारे खींच लेती है
न कोई साथ दे लेकिन सहारे खींच लेती है।
गिरे पतवार हाथों से भँवर में डोलतीं नैया
नहीं उम्मीद कोई पर किनारे खींच लेती है।

खिलेंगें फूल जब जब कंटकों की याद आयेगी
हमेशा जिंदगी में संकटों की याद आयेगी।
दुखों की बदलियाँ छँट जायेंगी फिर धूप निकलेगी
बढ़ेगी प्यास तब खाली घटों की याद आयेगी।।

चले ढूंढ़ने हम जो दिलदार असली
मिला ही न हम को कहीं प्यार असली।
लिये सर हथेली पे जो अपना आये
मुहब्बत का है वो ही हक़दार असली।।

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.