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पदचाप / महेन्द्र भटनागर
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पड़ रहे नूतन क़दम
फ़ौलाद-से दृढ़,
और छोटी पड़ रही छाया
नये युग आदमी की आज !
धरती सुन रही पदचाप
अभिनव ज़िन्दगी की !
बज रही झंकार,
मुखरित हो रहा संसार,
नव-नव शक्ति का संचार !
परिवर्तन !
बदलती एक के उपरान्त
सुन्दरतर
जगत् की प्रति निमिष तसवीर,
घटती जा रही है पीर,
जागी आदमी की आज तो
सोयी हुई तक़दीर !
रुक गया
मेरे जिगर का दर्द,
बरसों का उमड़ता
नैन का यह नीर !
गीले नेत्र करुणा-पूर्ण
तुझको देखते विश्वास से दृढ़तर,
यही आशा लगाये हैं
कि जब यह उठ रहा परदा पुराना
तब नया ही दृश्य आएगा,
कि पहले से कहीं खुशहाल
दुनिया को दिखाएगा !
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