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घर वापसी / एल्विन पैंग / सौरभ राय

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उस दिन लहरों की दिशा बदल जाएगी
अपने सर को धीरे से रखेगी वह
किनारों के नरम गालों पर।

जम्बू के घने दरख़्तों से
झरने लगेंगे गीले हरे पत्ते, ज़मीन को वापस कर दिए जाएँगे
उसके हिस्से के आँसू।

हर बादल अपनी जगह तलाश लेगा
सूरज को एहसास होगा
उनकी हिम्मत का।

कितनी देर से मैं सुनता रहा हूँ
अपने एकान्त में खड़े पहाड़ों की पुकार को,
नदियों को, समन्दर की तलाश में भटकते हुए

मैंने देखा है, तुझ में क़ैद सदियों को
जैसे चिड़ियों की जमात, एक साथ फड़फड़ाती है अपने पँख
तुम्हारे दिल के अन्दर कहीं।

बस उसी क्षण, मैं तुम्हारी देह की उदासी को
अपनी देह से आज़ाद करना चाहता हूँ,
और पिंजरे के ताले से आवाज़ आएगी
खुलने की।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सौरभ राय