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जीवन / महेन्द्र भटनागर
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हर आगत पल का
स्वागत है !
मेरे हाथ पकड़
उठता है दिन,
मेरे कंधों पर चढ़
बढ़ता है दिन !
मेरे मन से
अभिनव रचना
करता है दिन,
मेरे तन से
सृष्टि नयी
गढ़ता है दिन !
लड़ मेरे बल पर
जीता है दिन,
क्षण-क्षण मेरे जीने पर
जीता है दिन !
मेरी गति से
सार्थक होता काल अमर,
मैं ही हूँ
अविजित अविराम समर,
मेरे सम्मुख हर
पर्वत-बाधा नत है,
हर आगामी कल का
स्वागत है !