शायर-ए-आज़म / दिलावर 'फ़िगार'
कल इक अदीब ओ शाएर ओ नाक़िद मिले हमें
कहने लगे कि आओ ज़रा बहस ही करें
करने लगे ये बहस कि अब हिन्द ओ पाक में
वो कौन है कि शायर-ए-आज़म जिसे कहें
मैंने कहा 'जिगर' तो कहा डेड हो चुके
मैंने कहा कि 'जोश' कहा क़द्र खो चुके
मैंने कहा 'फ़िराक़' की अज़्मत पे तब्सिरा
बोले 'फ़िराक़' शायर-ए-आज़म अरा-ररा
मैंने कहा 'नदीम' तो बोले कि जॉर्नलिस्ट
मैंने कहा 'रईस' तो बोले स्टायरिस्ट
मैंने कहा कि हज़रत-ए-'माहिर' भी ख़ूब हैं
कहने लगे कि उन के यहाँ भी उयूब हैं
मैंने कहा कुछ और तो बोले कि चुप रहो
मैं चुप रहा तो कहने लगे और कुछ कहो
मैंने कहा कि 'साहिर' ओ 'मजरूह' ओ जाँ-निसार
बोले कि शाइरों में न कीजे इन्हें शुमार
मैंने कहा कलाम-ए-'रविश' ला-जवाब है
कहने लगे कि उन का तरन्नुम ख़राब है
मैंने कहा तरन्नुम-ए-'अनवर' पसंद है
कहने लगे कि उन का वतन देओबंद है
मैंने कहा कि उन की ग़ज़ल साफ़-ओ-पाक है
बोले कि उन की शक्ल बड़ी ख़ौफ़नाक है
मैंने कहा कि ये जो हैं 'महशर'-इनायती?
कहने लगे कि रंग है उन का रिवायती
मैंने कहा 'क़मर' का तग़ज़्ज़ुल है दिल-नशीं
कहने लगे कि उन में तो कुछ जान ही नहीं
मैंने कहा 'नियाज़' तो बोले कि ऐब हैं
मैंने कहा 'सुरूर' तो बोले कि नुक्ता-चीं
मैंने कहा ,ज़रीफ़' तो बोले कि गन्दगी
मैंने कहा 'सलाम' तो बोले कि बन्दगी
मैंने कहा 'फ़राज़' तो बोले कि ज़ेर-ओ-बम
मैंने कहा 'अदम' तो कहा वो भी कल-अदम
मैंने कहा 'ख़ुमार' कहा फ़न में कच्चे हैं
मैंने कहा कि 'शाद' तो बोले कि बच्चे हैं
मैंने कहा कि तंज़-निगारों में देखिए
बोले कि सैकड़ों में हज़ारों में देखिए
मैंने कहा कि शायर-ए-आज़म हैं 'जाफ़री'
कहने लगे कि आप की है उन से दोस्ती
मैंने कहा कि ये जो हैं 'महशर'-इनायती
कहने लगे कि आप हैं उन के हिमायती
मैंने कहा 'ज़मीर' के हियूमर में फ़िक्र है
बोले ये किस का नाम लिया किस का ज़िक्र है
मैंने कहा कि ये जो दिलावर-फ़िगार हैं
बोले कि वो तो सिर्फ़ ज़राफ़त-निगार हैं
मैंने कहा मिज़ाह में इक बात भी तो है
बोले कि इस के साथ ख़ुराफ़ात भी तो है
मैंने कहा तो शायर-ए-आज़म कोई नहीं
कहने लगे कि ये भी कोई लाज़मी नहीं
मैंने कहा तो किस को में शाएर बड़ा कहूँ
कहने लगे कि मैं भी इसी कश्मकश में हूँ
पायान-ए-कार ख़त्म हुआ जब ये तज्ज़िया
मैंने कहा हुज़ूर तो बोले कि शुक्रिया