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मन रा मीठा मानवी / मानसिंह राठौड़

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                   ।।१।।
हिलमिल रहत हमेश,होवै भेळा बाथ भर ।
करै नहीं'र कलेष,मन रा मीठा मानवी ।।
                 ।।२।।
वैरी बोले वैण,करै रिछाई सुण नहीं ।
संतां हन्दा सैण,मन रा मीठा मानवी ।।
                 ।।३।।
चौपाळां रो चाव,बैठ हथायां मिळ करै ।
भरै प्रेम रा भाव,मन रा मीठा मानवी ।।
                 ।।४।।
नेणों अणहद नेह,देय अनूठो ओळबो ।
मनवारां रो मेह,मन रा मीठा मानवी ।।
                  ।।५।।
अमट रखै आबाद,पूछै सुख अर दुक्ख री ।
मिनख तणी मरजाद,मन रा मीठा मानवी ।।
                   ।।६।।
पल पल 'मान'पिलाय,प्याला नित रस प्रेम रा ।
राखै हिये लगाय,मन रा मीठा मानवी ।।