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ओट हाथ की / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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तुम न होते बुझ जाता दीपक सींच नेह से जला दिया तुमने चौराहे पर ओट हाथ की दे दी आँधी को रोका फूत्कार-भय त्यागा नागों को नाथा । यह कैसे हो पाता बिना तुम्हारे हम जी पाते कैसे बिना सहारे दंशित नस -नस काल सामने तुमने मन्त्र पढ़े विष सदा उतारा -0-




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