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कवियों का जीवन / जोस इमिलिओ पाचेको / राजेश चन्द्र

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कविता का
कोई सुखद अन्त नहीं होता,
कवि समाप्त हो जाते हैं
अपना पागलपन जीते हुए।

वे बँटे हुए हैं
मवेशियों की तरह
खेमों में

(यही तो हुआ दारियो के साथ भी)।

वे पत्थर हो गए हैं,
चुक गए हैं
समुद्र की तरफ़ ढकेलते हुए ख़ुद को,
या सायनाइड दबा कर अपने मुँह में।

कुछ अन्य मर गए
शराब,
नशीली दवाओं
और ग़रीबी से।

कुछ और भी वाहियात
प्राधिकृत कवि
किसी मक़बरे के चिड़चिड़े निवासी
काम पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र