भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुए कैसा खेल नहीं, जै हार ना हो तो / गन्धर्व कवि प. नन्दलाल

Kavita Kosh से
Sandeeap Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:23, 8 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेराम भारद्वाज |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जुए कैसा खेल नहीं, जै हार ना हो तो,
चोरी कैसा मजा नहीं, जै मार ना हो तो ।। टेक ।।

श्री गंगा कैसा नीर नहीं, और विष्णु जैसा तीर नहीं,
त्रिया जिसा वजीर नहीं, बदकार ना हो तो।।

शान्ति सम हथियार नहीं , धर्म सरीखा यार नहीं,
भाईयों जैसा प्यार नहीं, तकरार ना हो तो।।

फूलै फलै फिरांस नहीं, बेईमान का विश्वास नहीं,
इस बोली जिसा मिठास नहीं, जै खार ना हो तो।।

भगती हो सै लाल लखीणा, कुंदनलाल हरी रस पीणा,
नन्दलाल कहै क्या जीणा, पर उपकार ना हो तो।।