भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कवि भगत व्यापारी, भुखे भाव के होते / गन्धर्व कवि प. नन्दलाल

Kavita Kosh से
Sandeeap Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:53, 11 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गन्धर्व कवि पं नन्दलाल |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवि भगत व्यापारी, भुखे भाव के होते,
दिल मुड़ते नहीं टुटज्यां, पक्के ताव के होते ।। टेक ।।

विद्या चतुर पुरुष पढ़ता है, प्रेमी मिले प्रेम बढ़ता है,
जिस समय भाव बढ़ता है, पूरे पाव के होते।।

दुख हो आधी व्याधी अन्दर, सुख हो अटल समाधी अन्दर,
ब्याह शादी अन्दर, काम सभी रंग चाव के होते।।

जो जन चरण शरण मैं आते, कटज्या मल फल उत्तम पाते,
ना सिंधु मैं भय खाते, जो खेवट नाव के होते।।

केशोराम चाम की पोल, बजैं कुंदनलाल काल के ढ़ोल,
नंदलाल बखत के बोल, करणीये घाव के होते।।