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नान्‍दीमुख / कुमार मुकुल

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यह भ्रम
के मैं
नान्दीमुख हूँ
उस दिन टूट ही गया
जब उस किशोरी ने
ग्रुप फ़ोटो लेते
मिन्नत की ...
अंकल, मुस्कुराओ ना
जरा सा, कोशिश करो प्लीज
इस पर
ठहाके लगा बैठा मैं
पर मुस्कुराहट नहीं आई
यह तस्वीरें देख पता चला

वो किशोर वय थी
जब मुस्कुराने से बनी
झुर्रियों को लेकर
चिंतित हो जाया करता
फिर
मुँह फूलने-पिचकाने का
उद्योग चलता कुछ दिन

फिर युवतर दिनों की चुनौती
के यह सब
इसके वश का नहीं
और सोते-जागते का सवाल
के कौन से महूरत में
लावण्या को
दी जाए किताब
और एक दोपहरी
अपनी आवाज में शहद घोलता मैं
आप अंग्रेजी साहित्य की छात्रायें हैं...
और उसकी मुस्कान - जी...हाँ
और
उर्वशी-पुरुरवा बन बैठे दोनो
और एक दिन
...लौट जाओ पुरुरवा
उर्वशी कभी प्राप्त नहीं होगी
अपनी जिरह ...
मूल कथा में तो
मिलते हैं दोनो
और वह पाठ - - -
जीवन कथा का मूल नहीं
इसका कोई उसूल नहीं।​​