भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भावदूत / राम शरण शर्मा 'मुंशी'
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:35, 18 जुलाई 2018 का अवतरण
खिलते हैं फूल
गमकती है महक
धरा से क्षितिज तक ...
कितने हाथ
विविध वर्ण
ऊपर को उठते
थरथराते हैं... !
निहारते हैं
सतत
गतिशील ज्योतिपुँज
रवि-रथ को
अपलक ...
गन्ध-पूत
अनगिनत
भाव-दूत
ऋतुमती धरित्री के
नभ तक
सरसराते हैं !