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नेकनीयत नहीं शाह ... / सुरेश स्वप्निल
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फ़ासलों से हमें ना डराया करो
फ़र्ज़ है आपका याद आया करो
हो शबे-तार तो रौशनी के लिए
चाँदनी की तरह झिलमिलाया करो
रोज़ मिलिए न मिलिए हमें शौक़ से
ईद में तो गले से लगाया करो
बदनसीबी ख़ुशी में बदल जाएगी
रंजो-ग़म में हमें आज़माया करो
ज़ीस्त की जंग में ज़िन्दगी कम न हो
रूठने के लिए मान जाया करो
शायरी से अगर आग लगती नहीं
रिज़्क़ के काम में जी लगाया करो
कोई सज्दा नहीं, बुतपरस्ती नहीं
दें अज़ाँ हम तभी सर झुकाया करो
नेकनीयत नहीं शाह इस दौर का
सौ दफ़ा सोच कर पास जाया करो
एक ही है ख़ुदा, एक ही ख़ानदाँ
क्यूँ किसी ग़ैर का घर जलाया करो ?
( 2015 )