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स्वागत : 21वीं शती का / महेन्द्र भटनागर

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आगामी सौ वर्षों में

वि-ज्ञान सूर्य की
अभिनव किरणों से
आलोकित हो
मानव-मन !

अंधे विश्वासों से
अंधी आस्था से
ऊपर उठ कर,
मिथ्या जड़ आदिम
तथाकथित धर्मों की
कट्टरता से
हो कर मुक्त
नयी मानवता का
सच्चा पूजक हो
जन-जन !

एक अभीप्सित
व्यापक विश्व-धर्म में
दीक्षित हो
पूर्ण लोक,
फेंके उतार
गतानुगत खोखले विचारों का
सड़ा-गला निर्मोक !
क्षयी विगलित
कुष्ठ-कोष आवरण कवच,
जिससे दीखे केवल
सच...सच !

आगामी सौ वर्षों में
स्थापित हो साम्राज्य
दया ममता करुणा का,
फैले
अभिमंत्रित संस्कृत शीतल
जल वरुणा का

वीभत्स घृणा-दर्शन
हिंसा से,
आहत मानव मन पर
तन पर !

वसुधा
आप्लावित हो
उन्नत भावों सद्भावों से,
आच्छादित हो
मर्यादित न्यायोचित प्रस्तावों से !
हो लुप्त जगत से
बर्बरता
क्रूर दनुजता
ध्वंसक वैर विकलता,
सब
देव सहिष्णु बनें,
पालनकर्ता विष्णु बनें !