भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फगुवा ना / मनोज कुमार ‘राही’
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:46, 21 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज कुमार ‘राही’ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सैयां चलोॅ ना नैहरवा अइलै फागुन ना,
सखी रे सहेलिया मोरा सब चली गइलै,
हमहूँ जइबै आपनोॅ नैहरवा ना
सैयां चलोॅ ना
तोहरोॅ सभ्भेॅ बतिया हम्में मानै लै छियौं,
तोहें मानी लेॅ हमरोॅ यहेॅ बतिया ना
सैयां चलोॅ ना
भौजी के फोनवाँ आझे अइलोॅ छै,
मय आरो बाबू हमरोॅ राह ताकै छै,
सैयां चलोॅ ना
होरिया के नेतवा तोहरोॅ भेजबइलेॅ छौं,
छोटकी बहिनिया हमरोॅ तोहरोॅ बुलैलेॅ छौं
सैयां चलोॅ ना
सोचीसोची मनवाँ हमरोॅ हुलसै छै,
भौजी संग होलिया खेलबै नैहरवा ना
सैयां चलोॅ ना