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आधीरतिया / मनोज कुमार ‘राही’
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सखी री मोहे छोड़ गयो बालम,
अकेली आधी रतिया,
आँख खुललै जब मोरी सखिया,
सूना छेलै मोरा पिया बिनु सेजिया
सखी री
के मोरा सुनतै बिरहा के बतया,
ढरढर बहावै लोरवा आँखिया,
सखी री मोहे
याद मोहे आवै जखनी हुनखोॅ मीठी बतिया,
धकधक धड़कै हाय मोरा छतिया,
सखी री मोहे
ना हमरोॅ घरो में सासननदिया,
विरहा में अकेली बेयरी बीते नाहीं रतिया,
सखी री मोहे
कुछ नाहीं हमरा से बोली केॅ गेलोॅ छै,
भइलोॅ हमहूँ बावरी निरमोही भइलोॅ छै,
सखी री मोरी
मनवाँ में उठे मोरा ढेरों उनदेशवा,
कोनी कारा पिया गइलै विद्ेशवा,
सखी री मोही
कैहु विधि पिया मोरा घर लौटी आवेॅ
‘राही’ से पुछै छियै तनी मरम बतावोॅ,
सखी री मोहे