भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पाछा पग थूं धरयै ना / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:07, 24 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र जोशी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कीं थारी लीला दिखाव
इण घर मांय
दिन री वेळा आयै
सगळा मिळ जासी।
थांनै लुकाऊं नीं
थांरै आडो आऊं नीं
थांनै सागै कीं नीं लावणो
छोड बंसरी नै
मा जसोदा अर नंद बाबा
अठै ई मिळ जासी
थांरी उडीक मांय।
बलराम-सुदामा अठै बिराजै
गोप-बाछड़ी सागै रमै
सूरज-चांद अठै मिळैला
बंसरी थारी सागै लायै
रूंख, गोपियां सगळा सुणैला।
कित्ता जुगां सूं उडीक है थारी
था संग मिळण सारू
मिळणै री टैम आयगी
पाछा पग थूं धर्यै ना।