भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिन रा सुपना / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:26, 24 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र जोशी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
छोरी रा सुपना
भोर री हवा भेळा
देखती गैरी नींद सूं पैली तांई।
उण समदर रै कनै सूं
आवती हवा
स्यात हवा नीं है
उण नाविक रो संदेसो है
छोरी रै गांव रै बिचाळै
हवा री लैर रो।
धोरां रै समदर मांय बैठी
बा छोरी खुद नै
उण नाव मांय
नाविक रै भेळी नाव चलावती
आपरै नैणां मांय
नाविक रा सुपना
फकत साफ देखै
दिन रै सुपनै मांय।