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रेत (सात) / राजेन्द्र जोशी
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कदैई नीं थकै
आपरै दरद रो
बखाण नीं करै
सैवती रैवै
अणथाग भार
आपरी जवान छाती माथै रेत।
पी जावै
दूजां रा दुख
नीं व्हाळा खतम कर सकै
करावो चालतो रैवै रेत माथै
कपाळ-क्रिया नीं कर सकै।
कित्ती मीठी है
जहर उगावै
पण खुद ज्हैरीली नीं हुवै
बा ई इमरत उगाय देवै
हंसती-हंसती गावती रैवै
मिनख री चामचोरी रा गीत
जवानी रो रंग दिखावती
बूढी नीं हुवै रेत।