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रक्षा / आहत युग / महेन्द्र भटनागर
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देश की नव देह पर
चिपकी हुई
जो अनगिनत जोंके-जलौकें,
रक्त-लोलुप
लोभ-मोहित
बुभुक्षित
जोंके-जलौकें —
आओ
उन्हें नोचें-उखाड़ें,
धधकती आग में झोंकें !
उनकी
आतुर उफ़नती वासना को
फैलने से
सब-कुछ लील लेने से
अविलम्ब रोकें !
देश की नव देह
यों टूटे नहीं,
ख़ुदगरज़ कुछ लोग
विकसित देश की सम्पन्नता
लूटे नहीं !