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लागतै भादवै बरस! / राजेन्द्र जोशी

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आवणो है थनै
सोनलिया धोरां
ताळाब-बावड़ी
दरखत अर खेतां रै
साम्हीं देख।

म्हैं जाणूं
इंदर रो टैम
सावण रै सागै
म्हारै कानी देख
बगत ई
थारै आवण री।

थारै आयां
लबालब हुय जासी
महकसी माटी
हरिया टांच दरखत अर खेत
लागतै भादवै
बरस, बरस, बरस!