अेक जुध और / राजेन्द्र जोशी
म्हैं नीं जाणूं
उण जुध नै—
अेक जुध हुवणो चाईजै
नीं हुवै भलांई अर्जुन
नीं हुवै सारथी किसन
म्हैं जाणूं, नीं है महारथी, मोटा सूरमा
कोनी हुवै वीर भीम अर अंगद जैड़ा।
नीं है तो नीं है भीष्म, कर्ण, दुर्योधन
नीं कुंती है, अर नीं बांरा पूत
नीं इसड़ा पाटवी, जिकां री बंतळ
जुध करवा दीनो।
अेक जुध हुवणो लाजमी है
दु:शासन तो है
वीर नीं है
बडबोलो तो है
पाटवी नीं
कठपूतळ्यां घणी है।
पांचाळी रो कांई
गिणत पार री प्रीत घणी है
अबै नारी पूजा तो है
पण इज्जत री ठौड़ नीं है
अबै नाजोगै मिनखां रो कांई
लुगायां ई घणी है
प्रेम रो वौपार घणो है
पण प्रेम फकत पईसां रो।
अबै नीं चाईजै दुर्योधन
घर-घर दुर्योधन भर्या पड़्या है
नीं घींसणी पड़ै नाजोगी नै
नूंतै अेक अर मिळै अनेक
हेला मारै दुर्योधन भेळा पड़्या है
खसमां री कांई मानता
अबै रुखाळीदार है खसम...
अबै प्रगट हुयग्या
दुर्योधन ई दुर्योधन
कांई दुर्योधन री
अबै दुर्योधन रा अेजेंट फिरै
दुर्योधन बण्या, जका दुर्योधन रो काम करै।
अबै दुर्योधन फीटो नीं है
नीं रैयो माडाणी रो काम
अबै मोल-भाव अर राजी-खुसी रो सौदो है
कियां करां, किण री करां पूजा
नीं समझ सक्या अर्जुन अर किसन।
नीं समझै किसन अर अर्जुन
आज रै जुध री भासा
फगत जुध रो मैदान कठै
नाजोगा होवता थकां ई
नाजोगा कठै?
सूरज अर चांदो तो बो ईज है
दोनूं हामळ भरै
अेक और जुध होवणो चाईजै
म्हैं जाणूं—
नीं मिळै किसन
नीं मिळै अर्जुन
पण दु:शासन अर दुर्योधन मिळै
अेक जुध और होवणो चाईजै।