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हाइकु 37 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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राजनीति तो
सदा रै‘वै जागती
कोमा में आपां
अे अखबार
सेवा नामै ब्यौपार
साच री हार
‘‘मा’’ सुणता ई
रग-रग में बै‘वै
अमृत-धार